अजीब बात है मैं जब भी कुछ उदास हुआ
दिया सहारा हरीफ़ों की बद-दुआओं ने
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तुम्हें मिरे ख़याल की मुसव्विरी क़ुबूल हो
आँसू हूँ हँस रहा हूँ शगूफ़ों के दरमियाँ
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
अवाम
बन गई है मौत कितनी ख़ुश-अदा मेरे लिए
मज़दूर लड़की
वो ज़िंदा है
वो सिर्फ़ मैं हूँ जो सौ जन्नतें सजा कर भी
धरती अमर है
ग़म पर हैं तअ'ना-ज़न तो ख़ुशी भी निभाइए
इन ग़ज़ालान-ए-तरह-दार को कैसे छोड़ूँ
हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है