वो सिर्फ़ मैं हूँ जो सौ जन्नतें सजा कर भी
उदास उदास सा तन्हा दिखाई देने लगे
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अब अयादत को मिरी कोई नहीं आएगा
फूलों के देस चाँद सितारों के शहर में
ग़म मुसलसल हो तो अहबाब बिछड़ जाते हैं
आज फिर ये कह रहा हूँ
ग़म पर हैं तअ'ना-ज़न तो ख़ुशी भी निभाइए
मुझे वो नज़्म लिखनी है
तुम्हें मिरे ख़याल की मुसव्विरी क़ुबूल हो
हम ऐसे लोग जल्द असीर-ए-ख़िज़ाँ हुए
वो ज़िंदा है
सड़क बन रही है
अवाम
यूँ ही आँखों में आ गए आँसू