यूँ ही आँखों में आ गए आँसू
जाइए आप कोई बात नहीं
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ग़म पर हैं तअ'ना-ज़न तो ख़ुशी भी निभाइए
ये अब्र-ओ-बाद ये तूफ़ान ये अँधेरी रात
ऐ मिरे घर की फ़ज़ाओं से गुरेज़ाँ महताब
बुझ गई कुछ इस तरह शम्-ए-'सलाम'
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
अब मा-हसल हयात का बस ये है ऐ 'सलाम'
आज तो शम्अ हवाओं से ये कहती है 'सलाम'
न मौज-ए-बादा न ज़ुल्फ़ों न इन घटाओं ने
मैं तो कहता हूँ तुम्ही दर्द के दरमाँ हो ज़रूर
आग
ये धरती ख़ूब-सूरत है