अब मा-हसल हयात का बस ये है ऐ 'सलाम'
सिगरेट जलाई शे'र कहे शादमाँ हुए
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शगुफ़्ता बच्चों का चेहरा दिखाई देने लगे
ऐ मिरे घर की फ़ज़ाओं से गुरेज़ाँ महताब
कश्मकश
आज फिर ये कह रहा हूँ
ये अब्र-ओ-बाद ये तूफ़ान ये अँधेरी रात
कभी कभी अर्ज़-ए-ग़म की ख़ातिर हम इक बहाना भी चाहते हैं
मैं तो कहता हूँ तुम्ही दर्द के दरमाँ हो ज़रूर
हवा ज़माने की साक़ी बदल तो सकती है
अजीब बात है मैं जब भी कुछ उदास हुआ
अवाम
हम ऐसे लोग जल्द असीर-ए-ख़िज़ाँ हुए