Ghazals of Saleem Kausar (page 2)

Ghazals of Saleem Kausar (page 2)
नामसलीम कौसर
अंग्रेज़ी नामSaleem Kausar
जन्म की तारीख1945

किस की तहवील में थे किस के हवाले हुए लोग

कैसे हंगामा-ए-फ़ुर्सत में मिले हैं तुझ से

कहीं तुम अपनी क़िस्मत का लिखा तब्दील कर लेते

कहानी लिखते हुए दास्ताँ सुनाते हुए

कभी सितारे कभी कहकशाँ बुलाता है

कभी मौसम साथ नहीं देते कभी बेल मुंडेर नहीं चढ़ती

जुनूँ तब्दीली-ए-मौसम का तक़रीरों की हद तक है

इस आलम-ए-हैरत-ओ-इबरत में कुछ भी तो सराब नहीं होता

ग़ुबार होती सदी के सहराओं से उभरते हुए ज़माने

इक घड़ी वस्ल की बे-वस्ल हुई है मुझ में

डूबने वाले भी तन्हा थे तन्हा देखने वाले थे

दिल-ए-सीमाब-सिफ़त फिर तुझे ज़हमत दूँगा

दिल तुझे नाज़ है जिस शख़्स की दिलदारी पर

दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो

चश्म बे-ख़्वाब हुई शहर की वीरानी से

चराग़-ए-याद की लौ हम-सफ़र कहाँ तक है

बस इक रस्ता है इक आवाज़ और एक साया है

बदल गया है सभी कुछ उस एक साअत में

अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं

ऐ शब-ए-हिज्र अब मुझे सुब्ह-ए-विसाल चाहिए

अभी जो गर्दिश-ए-अय्याम से मिला हूँ मैं

अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा

अब फ़ैसला करने की इजाज़त दी जाए

आब ओ हवा है बरसर-ए-पैकार कौन है

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