Ghazals of Saleem Kausar

Ghazals of Saleem Kausar
नामसलीम कौसर
अंग्रेज़ी नामSaleem Kausar
जन्म की तारीख1945

ये लोग जिस से अब इंकार करना चाहते हैं

याद कहाँ रखनी है तेरा ख़्वाब कहाँ रखना है

वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है

वो जो हम-रही का ग़ुरूर था वो सवाद-ए-राह में जल-बुझा

वो जो आए थे बहुत मंसब-ओ-जागीर के साथ

वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं

वो आँखें जिन से मुलाक़ात इक बहाना हुआ

वहाँ महफ़िल न सजाई जहाँ ख़ल्वत नहीं की

तुम ने सच बोलने की जुरअत की

तुझ से बढ़ कर कोई प्यारा भी नहीं हो सकता

तू सूरज है तेरी तरफ़ देखा नहीं जा सकता

तिलिस्म-ख़ाना-ए-अस्बाब मेरे सामने था

तारे जो कभी अश्क-फ़िशानी से निकलते

सरासर नफ़ा था लेकिन ख़सारा जा रहा है

सफ़र की इब्तिदा हुई कि तेरा ध्यान आ गया

क़ुर्बतें होते हुए भी फ़ासलों में क़ैद हैं

फिर जी उठे हैं जिस से वो इम्कान तुम नहीं

न कोई नाम ओ नसब है न गोश्वारा मिरा

न इस तरह कोई आया है और न आता है

मुलाक़ातों का ऐसा सिलसिला रक्खा है तुम ने

मोहलत न मिली ख़्वाब की ताबीर उठाते

मिलना न मिलना एक बहाना है और बस

मैं उसे तुझ से मिला देता मगर दिल मेरे

मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है

लौ को छूने की हवस में एक चेहरा जल गया

लय मोहब्बत की है आहंग सुख़न-साज़ का है

क्या बताएँ फ़स्ल-ए-बे-ख़्वाबी यहाँ बोता है कौन

कुछ भी था सच के तरफ़-दार हुआ करते थे

कोई याद ही रख़्त-ए-सफ़र ठहरे कोई राहगुज़र अनजानी हो

कोई सच्चे ख़्वाब दिखाता है पर जाने कौन दिखाता है

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