कुछ ऐसा हो कि तस्वीरों में जल जाए तसव्वुर भी
मोहब्बत याद आएगी तो शिकवे याद आएँगे
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फ़िक्र ओ एहसास के तपते हुए मंज़र तक आ
बना देगी ज़मीं को आज शायद आसमाँ बारिश
ख़मोशी में छुपे लफ़्ज़ों के हुलिए याद आएँगे
आज दीवाने का ज़ौक़-ए-दीद पूरा हो गया
कभी सुर्ख़ी से लिखता हूँ कभी काजल से लिखता हूँ
'ग़ालिब'-ए-दाना से पूछो इश्क़ में पड़ कर सलीम
नूर की शाख़ से टूटा हुआ पत्ता हूँ मैं
एक ही ज़िंदा बचा है ये निराला पागल
दिन-ब-दिन सफ़्हा-ए-हस्ती से मिटा जाता हूँ
वक़्त के सहरा में नंगे पाँव ठहरे हो 'सलीम'