तू ने कब इश्क़ में अच्छा बुरा सोचा 'सरवर'
कैसे मुमकिन है कि तेरा बुरा अंजाम न हो
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बे-कैफ़ जवानी है बे-दर्द ज़माना है
वाक़िफ़ थे कहाँ हम दिल-ए-ना-चार से पहले
कम-अयारी ने ख़ुदा-सोज़ बनाया ऐसा
सुब्ह को चैन न हो शाम को आराम न हो
शौक़ है तुझ को ज़माने में तिरा नाम रहे
बयान क़िस्सा-ए-बेचारगी किया जाए
आरज़ू हसरत और उम्मीद शिकायत आँसू
जिस क़दर शिकवे थे सब हर्फ़-ए-दुआ होने लगे
देख ये जज़्ब-ए-मोहब्बत का करिश्मा तो नहीं
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक