मुझ को भी कर देगा रुस्वा वो ज़माने भर में
ख़ुद भी हो जाएगा बदनाम यही लगता है
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इक यही सोच बिछड़ने नहीं देती तुझ से
अगर बिछड़ने का उस से कोई मलाल नहीं
अभी से छोटी हुई जा रही हैं दीवारें
उसी के क़ुर्ब में रह कर हरी भरी हुई है
हम अगर सच के उन्हें क़िस्से सुनाने लग जाएँ
मेरे आने की ख़बर सुन के वो दौड़ा आता
लौट आएगा किसी शाम यही लगता है
ये अपने आप पे ताज़ीर कर रही हूँ मैं
ये तो सोचा ही नहीं उस को जुदा करते हुए
ख़ुद चराग़ों को अंधेरों की ज़रूरत है बहुत
हिसार-ए-ज़ात में सारा जहान होना था