मुफ़लिसों की बस्ती को बेकसी ने घेरा है
हर तरफ़ उदासी है ज़ुल्मतों का डेरा है
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लगता है जिस का रुख़-ए-ज़ेबा मह-ए-कामिल मुझे
इन सभी दरख़्तों को आँधियों ने घेरा है
इस रंग बदलती दुनिया में पहचान बड़ी ही मुश्किल है
तेरी फ़य्याज़ी के थे चर्चे बहुत मैं ने सुने
ख़याल उन का सताए जा रहा है
मेरे दिल में घर भी बनाता रहता है
तुझे इस गाँव से जाना है इक दिन
जो तुम से मिला होगा जो तुम ने दिया होगा
बेताबियों को मेरी बढ़ाने लगी हवा
माझी ने डुबोया है लहरों ने उछाला है
सुना है तेरी ज़माने पे हुक्मरानी है