Ghazals of Shahid Zaki

Ghazals of Shahid Zaki
नामशाहिद ज़की
अंग्रेज़ी नामShahid Zaki
जन्म की तारीख1974

ज़र-ए-सरिश्क फ़ज़ा में उछालता हुआ मैं

ज़ंजीर कट के क्या गिरी आधे सफ़र के बीच

ज़ब्त-ए-ग़म है मिरी पोशाक मिरी इज़्ज़त रख

यूँ तो नहीं कि पहले सहारे बनाए थे

यूँ मुझे तेरी सदा अपनी तरफ़ खींचती है

ये जो इज़हार करना होता है

यार भी राह की दीवार समझते हैं मुझे

तेरी मर्ज़ी के ख़द-ओ-ख़ाल में ढलता हुआ मैं

रात सी नींद है महताब उतारा जाए

मिरे ख़ुदा किसी सूरत उसे मिला मुझ से

मैं अपने हिस्से की तन्हाई महफ़िल से निकालूँगा

क्या कहूँ कैसे इज़्तिरार में हूँ

जिधर भी देखिए इक रास्ता बना हुआ है

बिन माँगे मिल रहा हो तो ख़्वाहिश फ़ुज़ूल है

बिछड़ गया था कोई ख़्वाब-ए-दिल-नशीं मुझ से

बस रूह सच है बाक़ी कहानी फ़रेब है

अब तिरी याद से वहशत नहीं होती मुझ को

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