पीने को इस जहान में कौन सी मय नहीं मगर
इश्क़ जो बाँटता है वो आब-ए-हयात और है
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वहाँ खुले भी तो क्यूँकर बिसात-ए-हिकमत-ओ-फ़न
रखना है तो फूलों को तू रख ले निगाहों में
रौशनी तेज़ करो
पी ले जो लहू दिल का वो इश्क़ की मस्ती है
कौन है दर्द-आश्ना संग-दिली का दौर है
अगरचे इश्क़ में इक बे-ख़ुदी सी रहती है
राहगुज़र
ज़बाँ को हुक्म ही कहाँ कि दास्तान-ए-ग़म कहें
पी कर भी तबीअत में तल्ख़ी है गिरानी है
हुजूम-ए-दर्द में ख़ंदाँ है कौन मेरे सिवा
जो मिल गई हैं निगाहें कभी निगाहों से
जुनूँ तो है मगर आओ जुनूँ में खो जाएँ