कोई वज्द है न धमाल है तिरे इश्क़ में
मिरा दिल कि वक़्फ़-ए-मलाल है तिरे इश्क़ में
ये जो ख़्वाब में भी है ख़्वाब कैफ़-ओ-सुरूर का
तिरे इश्क़ का ही कमाल है तिरे इश्क़ में
मैं निकल ही जाऊँगा वहशतों के हिसार से
ये तो सोचना भी मुहाल है तिरे इश्क़ में
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इक नींद की वादी से गुज़ारा गया मुझ को
वक़्त हर बार बदलता हुआ रह जाता है
दिनों से कैसे शबों में ढलते हैं दिन हमारे
सदियों के तआ'क़ुब में लम्हे नहीं जाएँगे
ख़ुश-कुन ख़बर के धोके में रक्खा गया मुझे
जहान-ए-ख़्वाब-ए-मेहरबाँ की ख़ैर हो
सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ
वो अक्स मुझ में जुनूँ-साज़ रक़्स करने लगा
जुनूब ओ मश्रिक ओ मग़रिब तिरे शुमाल तिरा