शाज़ तमकनत कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाज़ तमकनत (page 2)

शाज़ तमकनत कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का शाज़ तमकनत (page 2)
नामशाज़ तमकनत
अंग्रेज़ी नामShaz Tamkanat
जन्म की तारीख1933
मौत की तिथि1985
जन्म स्थानHyderabad

सुख़न राज़-ए-नशात-ओ-ग़म का पर्दा हो ही जाता है

सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया

सिमट सिमट सी गई थी ज़मीं किधर जाता

शिकन शिकन तिरी यादें हैं मेरे बिस्तर की

शब-ए-वा'दा कह गई है शब-ए-ग़म दराज़ रखना

शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है

साँसों में बसे हो तुम आँखों में छुपा लूँगा

सन कर बयान-ए-दर्द कलेजा दहल न जाए

सँभला नहीं दिल तुझ से बिछड़ कर कई दिन तक

नफ़स नफ़स है तिरे ग़म से चूर चूर अब तक

न महफ़िल ऐसी होती है न ख़ल्वत ऐसी होती है

मिसाल-ए-शोला-ओ-शबनम रहा है आँखों में

मेरी वहशत का तिरे शहर में चर्चा होगा

मिरे नसीब ने जब मुझ से इंतिक़ाम लिया

मिरा ज़मीर बहुत है मुझे सज़ा के लिए

मैं तो चुप था मगर उस ने भी सुनाने न दिया

मैं लौट आऊँ कहीं तू ये सोचता ही न हो

क्या क़यामत है कि इक शख़्स का हो भी न सकूँ

क्या करूँ रंज गवारा न ख़ुशी रास मुझे

कुछ अजब आन से लोगों में रहा करते थे

कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहा हूँ मैं

कोई तन्हाई का एहसास दिलाता है मुझे

किस किस को अब रोना होगा जाने क्या क्या भूल गया

ख़्वार-ओ-रुसवा थे यहाँ अहल-ए-सुख़न पहले भी

ख़्वाब नादिम हैं कि ता'बीर दिखाने से गए

ख़ुद अपना हाल दिल-ए-मुब्तला से कुछ न कहा

कौन देता रहा सहरा में सदा मेरी तरह

जिस तरफ़ जाऊँ उधर आलम-ए-तन्हाई है

जिन ज़ख़्मों पर था नाज़ हमें वो ज़ख़्म भी भरते जाते हैं

जाने वाले तुझे कब देख सकूँ बार-ए-दिगर

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