Ghazals of Siraj Aurangabadi (page 4)

Ghazals of Siraj Aurangabadi (page 4)
नामसिराज औरंगाबादी
अंग्रेज़ी नामSiraj Aurangabadi
जन्म की तारीख1714
मौत की तिथि1763
जन्म स्थानAurangabad

गुल-रुख़ों ने किए हैं सैर का ठाट

ग़म-ए-आहिस्ता-रौ याँ रफ़्ता रफ़्ता

ग़म ने बाँधा है मिरे जी पे खला हाए खला

ग़म की जब सोज़िश सीं महरम होवेगा

फ़िदा कर जान अगर जानी यही है

फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहा

फ़जर उठ यार का दीदार करनाँ

दो-रंगी ख़ूब नईं यक-रंग हो जा

दिन-ब-दिन अब लुत्फ़ तेरा हम पे कम होने लगा

दिल-ए-नादाँ मिरा है बे-तक़सीर

दिलदार की कशिश ने ऐंचा है मन हमारा

दिल मिरा साग़र-ए-शिकायत है

दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए

दिल में जब आ के इश्क़ ने तेरे महल किया

देखा है जिस ने यार के रुख़्सार की तरफ़

चराग़-ए-मह सीं रौशन-तर है हुस्न-ए-बे-मिसाल उस का

भरा कमाल-ए-वफ़ा सें ख़याल का शीशा

बात कर दिल सती हिजाब निकाल

अव्वल सीं दिल मिरा जो गिरफ़्तार था सो है

अश्क-ए-ख़ूनीं है शफ़क़ आज मिरी आँखों में

अपना जमाल मुझ कूँ दिखाया रसूल आज

अमल सें मय-परस्तों के तुझे क्या काम ऐ वाइ'ज़

ऐ सनम तुझ बिरह में रोता हूँ

ऐ दोस्त तलत्तुफ़ सीं मिरे हाल कूँ आ देख

ऐ दिल-ए-बे-अदब उस यार की सौगंद न खा

ऐ बाग़-ए-हया दिल की गिरह खोल सुख़न बोल

अग़्यार छोड़ मुझ सें अगर यार होवेगा

अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते

अदा-ए-दिल-फ़रेब-ए-सर्व-क़ामत

आया पिया शराब का प्याला पिया हुआ

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