हम से पूछो न दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा
Mohsin Naqvi
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Allama Iqbal
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Gulzar
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मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
मेरे दुख की कोई दवा न करो
ज़िक्र जब होगा मोहब्बत में तबाही का कहीं
ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
तेरे जाने में और आने में
इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहीं
दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें
तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
कुछ तो दुनिया की इनायात ने दिल तोड़ दिया