सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं
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फ़लसफ़े इश्क़ में पेश आए सवालों की तरह
दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं
ज़िक्र जब होगा मोहब्बत में तबाही का कहीं
शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही
ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं
मेरे दुख की कोई दवा न करो
हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब
इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहीं
मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर