मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Parveen Shakir
Habib Jalib
Anwar Masood
Wasi Shah
Rahat Indori
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(856) Peoples Rate This
तेरे जाने में और आने में
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
पत्थर के ख़ुदा पत्थर के सनम पत्थर के ही इंसाँ पाए हैं
हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब
ये सिखाया है दोस्ती ने हमें
तुम न घबराओ मिरे ज़ख़्म-ए-जिगर को देख कर
दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा
अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है
दुनिया से वफ़ा कर के सिला ढूँढ रहे हैं
मेरे दुख की कोई दवा न करो