लम्हा-ए-इमकान को पहलू बदलते देखना
आतिश-ए-बे-रंग में ख़ुद को पिघलते देखना
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जब सितारा थक गया
इंतिज़ार
शहरों के सारे जंगल गुंजान हो गए हैं
किस तरह उस को बुलाऊँ ख़ाना-ए-बर्बाद में
कोई आवाज़ नहीं
कभी वो मिस्ल-ए-गुल मुझे मिसाल-ए-ख़ार चाहिए
बस्तियाँ तो आसमाँ ले जाएँगे
आसमान-ए-यास पर खोया सितारा ढूँढना
आख़िरी पत्तियों में
सुनाओ मुझे भी एक लतीफ़ा
हम दोनों में से एक