'सानी' फ़क़त तुम्हारा लिखा जिन ख़ुतूत पर
वो तो कभी के ज़ाएद-उल-मीआ'द हो गए
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क़स्में वा'दे रह जाते हैं
अपने अंदाज़ में औरों से जुदा लगते हो
मोहब्बत के तआ'क़ुब में थकन से चूर होने तक
अच्छा हुआ कि इश्क़ में बर्बाद हो गए
क्या बताएँ उस के बिन कैसे ज़िंदगी कर ली
मिरे अंदर कहीं पर खो गई है
इक मोहब्बत का फ़ुसूँ था सो अभी बाक़ी है
गिले शिकवे के दफ़्तर आ गए तुम
होंट मसरूफ़-ए-दुआ आँख सवाली क्यूँ है
दम-ए-विसाल ये हसरत रही रही न रही