वलीउल्लाह मुहिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वलीउल्लाह मुहिब (page 4)
नाम | वलीउल्लाह मुहिब |
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अंग्रेज़ी नाम | Waliullah Muhib |
लाला-रू तुम ग़ैर के पाले पड़े
किया बाग़-ए-जहाँ में नाम उन का सर्व कह कह कर
ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है
काफ़िर हुए सनम हम दीं-दार तेरी ख़ातिर
जो मरीज़ इश्क़ के हैं उन को शिफ़ा है कि नहीं
जिसे गर्म-इख़्तिलाती की लगा दे दिल में तू आतिश
जी चाहे का'बे जाओ जी चाहे बुत को पूजो
हो जिस क़दर कि तुझ से ऐ पुर-जफ़ा जफ़ा कर
हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी
हमारी चाह साहब जानते हैं
है मिरे पहलू में और मुझ को नज़र आता नहीं
ग़म-ए-जाँ तू है अगर राहत-ए-जाँ है तू है
दुनिया में क्या किसी से सरोकार है हमें
दिल-ए-ख़िल्क़त-ए-ख़ुदा को सनमा जला न चंदाँ
दिला ये मय-कदा-ए-इश्क़ है शराब तू पी
देखता कुछ हूँ ध्यान में कुछ है
देखा जो कुछ जहाँ में कोई दम ये सब नहीं
बुलबुल वो गुल है ख़्वाब में तू गा के मत जगा
बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस
ब-तस्ख़ीर-बुताँ तस्बीह क्यूँ ज़ाहिद फिराते हैं
अश्क-बारी का मिरी आँखों ने ये बाँधा है झाड़
ऐ हम-नफ़स उस ज़ुल्फ़ के अफ़्साने को मत छेड़
ऐ हम-दमाँ भुलाओ न तुम याद-ए-रफ़्तगाँ
ऐ दिल आता है चमन में वो शराबी तू पहुँच
आना है तो आ जाओ यक आन मिरा साहब