वलीउल्लाह मुहिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वलीउल्लाह मुहिब (page 1)

वलीउल्लाह मुहिब कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का वलीउल्लाह मुहिब (page 1)
नामवलीउल्लाह मुहिब
अंग्रेज़ी नामWaliullah Muhib

ज़ाहिदा तू सोहबत-ए-रिंदाँ में आया है तो सुन

ये जूँ जूँ वा'दे के दिन रात पड़ते जाते हैं

ये दाढ़ी मोहतसिब ने दुख़्त-ए-रज़ के फाड़ खाने को

ये बंदा हो या तुम हो वाँ ग़ैर न हो कोई

वो जो लैला है मिरे दिल में सुने उस का जो शोर

उस के कूचे ही में आ निकलूँ हूँ जाऊँ जिस तरफ़

तुम गाओ अपने राग को उस पास वाइ'ज़ो

तिरे कलाम ने कैसा असर किया वाइ'ज़

तमाम ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ज़ेर-ए-आसमाँ की समेट

सुख़न जिन के कि सूरत जूँ गुहर है बहर-ए-मअ'नी में

शोर रखते हैं जहाँ में जिस क़दर सब्ज़ान-ए-हिंद

शैख़ कहते हैं मुझे दैर न जा काबा चल

शैख़ है तुझ को ही इंकार सनम मेरे से

साक़ी हमें क़सम है तिरी चश्म-ए-मस्त की

रक़ीब जम के ये बैठा कि हम उठे नाचार

रहीम ओ राम की सुमरन है शैख़ ओ हिन्दू को

राग अपना गा हमारा ज़िक्र मत कर ऐ रक़ीब

रात आख़िर है यहाँ आया नज़र आसार-ए-सुब्ह

फूलों की सेज दोस्त की ख़ातिर 'मुहिब' बिछाओ

निकालूँ दिल से मैं नाले की किस तरह आवाज़

नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह

न तय एक रकअत की मंज़िल हुई

न कीजे वो कि मियाँ जिस से दिल कोई हो मलूल

'मुहिब' तुम बुत-परस्ती को न छोड़ो

मैं हूँ और साक़ी हो और हों रास ओ चुप ये वो बहम

मय-कदे में मस्त हैं और शोर उन का हाव-हू

कुछ न देखा किसी मकान में हम

किया है क़त्अ रिश्ता सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार का हम ने

ख़त का ये जवाब आया कि क़ासिद गया जी से

काश हम नाकाम भी काम आएँ तेरे इश्क़ में

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