रवानी में नज़र आता है जो भी
उसे तस्लीम कर लेते हैं पानी
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कुछ ख़ाक से है काम कुछ इस ख़ाक-दाँ से है
सारा बाग़ उलझ जाता है ऐसी बे-तरतीबी से
दश्त-ओ-दरिया की इब्तिदा से हैं
सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ
सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है
यूँ उठे इक दिन कि लोगों को हुआ
दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश
मुझ को ये वक़्त वक़्त को मैं खो के ख़ुश हुआ
बड़ी मुश्किल कहानी थी मगर अंजाम सादा है
ये किस ने हात पेशानी पे रक्खा
ये मेज़ ये किताब ये दीवार और मैं
रात गुज़री न कम सितारे हुए