आँख खुलते ही बस्तियाँ ताराज
कोई लज़्ज़त नहीं है ख़्वाबों में
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ख़बर तो दूर अमीन-ए-ख़बर नहीं आए
अजीब ख़्वाब था ताबीर क्या हुई उस की
अजब रंग आँखों में आने लगे
किसे बताते कि मंज़र निगाह में क्या था
ताबीर इस की क्या है धुआँ देखता हूँ मैं
सफ़र तो पहले भी कितने किए मगर इस बार
धुआँ उठ रहा है
क़िस्सा-गो
सदाएँ क़ैद करूँ आहटें चुरा ले जाऊँ
आवारा परछाइयाँ
भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में