अजीब ख़्वाब था ताबीर क्या हुई उस की
कि एक दरिया हवाओं के रुख़ पे बहता था
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किसे बताते कि मंज़र निगाह में क्या था
घर की हद में सहरा है
आवारा परछाइयाँ
सभी को अपना समझता हूँ क्या हुआ है मुझे
ताबीर इस की क्या है धुआँ देखता हूँ मैं
रोने को बहुत रोए बहुत आह-ओ-फ़ुग़ाँ की
हमारे बारे में क्या क्या न कुछ कहा होगा
भीनी ख़ुशबू सुलगती साँसों में
तेरी ख़बर मिल जाती थी
सोने से जागने का तअल्लुक़ न था कोई
वापसी
एक मंज़र में लिपटे बदन के सिवा