वक़्त लफ़्ज़ों से बनाई हुई चादर जैसा
ओढ़ लेता हूँ तो सब ख़्वाब हुनर लगता है
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Rahat Indori
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Wasi Shah
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1489) Peoples Rate This
याद कर कर के उसे वक़्त गुज़ारा जाए
अगर यूँही मुझे रक्खा गया अकेले में
पाँव पड़ता हुआ रस्ता नहीं देखा जाता
शिकस्ता-ख़्वाब-ओ-शिकस्ता-पा हूँ मुझे दुआओं में याद रखना
इश्क़ की जोत जगाने में बड़ी देर लगी
पागल
वो हँसती है तो उस के हाथ रोते हैं
उन आँखों में कूदने वालो तुम को इतना ध्यान रहे
वो कौन है जो पस-ए-चश्म-ए-तर नहीं आता
मेरे आ'साब मोअ'त्तल नहीं होने देंगे
अभी उस की ज़रूरत थी
झिलमिल से क्या रब्त निकालें कश्ती की तक़दीरों का