ये क़ैद है तो रिहाई भी अब ज़रूरी है
किसी भी सम्त कोई रास्ता मिले तो सही
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1542) Peoples Rate This
कितनी महबूब थी ज़िंदगी कुछ नहीं कुछ नहीं
दिन गुज़रते हैं गुज़रते ही चले जाते हैं
एक मिश्अल थी बुझा दी उस ने
फ़लक पर उड़ते जाते बादलों को देखता हूँ मैं
लोगों ने बहुत चाहा अपना सा बना डालें
उसे देख कर अपना महबूब प्यारा बहुत याद आया
ज़वाल-ए-जिस्म को देखो तो कुछ एहसास हो इस का
किसी दश्त ओ दर से गुज़रना भी क्या
पाँव रुकते ही नहीं ज़ेहन ठहरता ही नहीं
साए फैल गए खेतों पर कैसा मौसम होने लगा
अजीब शय है कि सूरत बदलती जाती है