दिन गुज़रते हैं गुज़रते ही चले जाते हैं
एक लम्हा जो किसी तरह गुज़रता ही नहीं
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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एक मिश्अल थी बुझा दी उस ने
ज़वाल-ए-जिस्म को देखो तो कुछ एहसास हो इस का
कुछ अपना पता दे कर हैरान बहुत रक्खा
कितनी महबूब थी ज़िंदगी कुछ नहीं कुछ नहीं
अजीब शय है कि सूरत बदलती जाती है
किसी का क़हर किसी की दुआ मिले तो सही
दिल में जो बात है बताते नहीं
बरसते थे बादल धुआँ फैलता था अजब चार जानिब
लौट गए सब सोच के घर में कोई नहीं है
कभी देखो तो मौजों का तड़पना कैसा लगता है