हर रुख़ है कहीं अपने ख़द-ओ-ख़ाल से बाहर
हर लफ़्ज़ है कुछ अपने मआनी से ज़ियादा
Wasi Shah
Anwar Masood
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(727) Peoples Rate This
क्या जानिए क्या है हद-ए-इदराक से आगे
कहीं टूटते हैं
ज़मीं नहीं ये मिरी आसमाँ नहीं मेरा
ये भी तो कमाल हो गया है
हम कि इक भेस लिए फिरते हैं
मौत दिल से लिपट गई उस शब
मिट्टी से एक मुकालिमा
फ़िराक़ ओ वस्ल से हट कर कोई रिश्ता हमारा है
वक़्त गुज़रता नहीं
मुझे डर लगता है
हम ने रक्खा था जिसे अपनी कहानी में कहीं
बारिश