तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
कहाँ है किस तरह की है किधर है
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क़यामत राग ज़ालिम भाव काफ़िर गत है ऐ पन्ना
देख तू बे-रहम आशिक़ नीं तुझे छोड़ा नहीं
जब सीं तिरे मुलाएम गालों में दिल धँसा है
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल कर नियाज़-ओ-ख़ाकसारी सीं
जो कि बिस्मिल्लाह कर खाए तआम
हमारे साँवले कूँ देख कर जी में जली जामुन
सैर-ए-बहार-ए-हुस्न ही अँखियों का काम जान
बहार आई गली की तरह दिल खोल
अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी
अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस
रखे कोई इस तरह के लालची को कब तलक बहला
कहें क्या तुम सूँ बे-दर्द लोगो किसी से जी का मरम न पाया