Khawab Poetry of Adil Mansuri

Khawab Poetry of Adil Mansuri
नामआदिल मंसूरी
अंग्रेज़ी नामAdil Mansuri
जन्म की तारीख1936
मौत की तिथि2009
जन्म स्थानAhmadabad

आधों की तरफ़ से कभी पौनों की तरफ़ से

नींद भी जागती रही पूरे हुए न ख़्वाब भी

वक़्त की रेत पे

वक़्त की पीठ पर

सितारा सो गया है

सफ़ेद रात से मंसूब है लहू का ज़वाल

लहू को सुर्ख़ गुलाबों में बंद रहने दो

गोश्त की सड़कों पर

चल निकलो

बंद मुट्ठी में होंट के टुकड़े

अलिफ़ लफ़्ज़ ओ मआनी से मुबर्रा

आमीन

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

सोए हुए पलंग के साए जगा गया

फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ

पहलू के आर-पार गुज़रता हुआ सा हो

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ

इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला

हाथ में आफ़्ताब पिघला कर

हर ख़्वाब काली रात के साँचे में ढाल कर

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

दूर उफ़ुक़ के पार से आवाज़ के पर्वरदिगार

बिस्मिल के तड़पने की अदाओं में नशा था

आशिक़ थे शहर में जो पुराने शराब के

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