Ghazals of Adil Mansuri

Ghazals of Adil Mansuri
नामआदिल मंसूरी
अंग्रेज़ी नामAdil Mansuri
जन्म की तारीख1936
मौत की तिथि2009
जन्म स्थानAhmadabad

आधों की तरफ़ से कभी पौनों की तरफ़ से

ज़मीं छोड़ कर मैं किधर जाऊँगा

ये फैलती शिकस्तगी एहसास की तरफ़

वुसअत-ए-दामन-ए-सहरा देखूँ

वो तुम तक कैसे आता

वो बरसात की शब वो पिछ्ला पहर

सोए हुए पलंग के साए जगा गया

साँस की आँच ज़रा तेज़ करो

सड़कों पर सूरज उतरा

फिर किसी ख़्वाब के पर्दे से पुकारा जाऊँ

फैले हुए हैं शहर में साए निढाल से

पानी को पत्थर कहते हैं

पहलू के आर-पार गुज़रता हुआ सा हो

न कोई रोक सका ख़्वाब के सफ़ीरों को

मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ

कौन था वो ख़्वाब के मल्बूस में लिपटा हुआ

जो चीज़ थी कमरे में वो बे-रब्त पड़ी थी

जीता है सिर्फ़ तेरे लिए कौन मर के देख

जलने लगे ख़ला में हवाओं के नक़्श-ए-पा

इबलाग़ के बदन में तजस्सुस का सिलसिला

हुआ ख़त्म दरिया तो सहरा लगा

होने को यूँ तो शहर में अपना मकान था

हाथ में आफ़्ताब पिघला कर

हर ख़्वाब काली रात के साँचे में ढाल कर

हज का सफ़र है इस में कोई साथ भी तो हो

घूम रहा था एक शख़्स रात के ख़ारज़ार में

गाँठी है उस ने दोस्ती इक पेश-इमाम से

एक क़तरा अश्क का छलका तो दरिया कर दिया

दूर उफ़ुक़ के पार से आवाज़ के पर्वरदिगार

दरवाज़ा बंद देख के मेरे मकान का

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