गोया तुम्हारी याद ही मेरा इलाज है
होता है पहरों ज़िक्र तुम्हारा तबीब से
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सू-ए-मय-कदा न जाते तो कुछ और बात होती
तुम और फ़रेब खाओ बयान-ए-रक़ीब से
याद में तेरी जहाँ को भूलता जाता हूँ मैं
हश्र में इंसाफ़ होगा बस यही सुनते रहो
गो हरम के रास्ते से वो पहुँच गए ख़ुदा तक
सब कुछ ख़ुदा से माँग लिया तुझ को माँग कर
गो हवा-ए-गुलसिताँ ने मिरे दिल की लाज रख ली
ये खुले खुले से गेसू इन्हें लाख तू सँवारे
निकहत-ए-साग़र-ए-गुल बन के उड़ा जाता हूँ
चोरी कहीं खुले न नसीम-ए-बहार की