कहते हैं कि रौनक़-ए-जमाली हूँ मैं
शोहरा है कि जल्वा-ए-जलाली हूँ मैं
जो नाम पसंद आए पुकारो मुझ को
कुछ भी नहीं तस्वीर-ए-ख़याली हूँ मैं
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चाक-ए-दिल से झाँकिए दुनिया इधर से दीन उधर
वो रात आए कि सर तेरा ले के बाज़ू पर
मैं सर पे गुनाहों का लिए बार आया
रमज़ाँ में तू न जा रू-ब-रू उन के 'माइल'
गर बस चले तो आप फिरूँ अपने गर्द मैं
जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
सारी ख़िल्क़त राह में है और हो मंज़िल में तुम
आफ़्ताब आए चमक कर जो सर-ए-जाम-ए-शराब
मेरा सलाम इश्क़ अलैहिस-सलाम को
क़िबला-ए-आब-ओ-गिल तुम्हीं तो हो
रू-ए-ताबाँ माँग मू-ए-सर धुआँ बत्ती चराग़