गर बस चले तो आप फिरूँ अपने गर्द मैं
का'बे को जा के कौन हो ऐ जान-ए-मन ख़राब
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पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे
तुम गले मिल कर जो कहते हो कि अब हद से न बढ़
मिटी कुछ बनी कुछ वो थी कुछ हुई कुछ
वो बुत परी है निकालें न बाल-ओ-पर ता'वीज़
यारब मिरे दिल में है उजाला तेरा
मैं अपने कफ़न का सीने वाला निकला
नींद से उठ कर वो कहना याद है
जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ
मुझ से बिगड़ गए तो रक़ीबों की बन गई
क़िबला-ए-आब-ओ-गिल तुम्हीं तो हो
क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब
सारी ख़िल्क़त राह में है और हो मंज़िल में तुम