यारब मिरे दिल में है उजाला तेरा
आईने की है बग़ल में जल्वा तेरा
'माइल' क्यूँ आप मुँह न देखे अपना
याँ भी तो चमक रहा है चेहरा तेरा
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मैं सर पे गुनाहों का लिए बार आया
दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
मिटी कुछ बनी कुछ वो थी कुछ हुई कुछ
कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं
मुझ से बिगड़ गए तो रक़ीबों की बन गई
तुम को मालूम जवानी का मज़ा है कि नहीं
मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस
हमराह अदम से इज़्तिराब आया है
बंद-ए-क़बा में बाँध लिया ले के दिल मिरा
चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या
वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ
जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ