दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
होते हैं दौड़ दौड़ के तिश्ना-दहन ख़राब
Gulzar
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कुछ न पूछो ज़ाहिदों के बातिन ओ ज़ाहिर का हाल
वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ
वा'दा किया है ग़ैर से और वो भी वस्ल का
मैं सर पे गुनाहों का लिए बार आया
कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं
क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब
कहते हैं कि रौनक़-ए-जमाली हूँ मैं
प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं
आफ़्ताब आए चमक कर जो सर-ए-जाम-ए-शराब
रमज़ाँ में तू न जा रू-ब-रू उन के 'माइल'
पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा