कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं
लब पर तारीफ़ दिल पे गर हात नहीं
यक वाह करे तो दूसरा आह करे
जिस में न असर हो वो मिरी बात नहीं
Anwar Masood
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
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नींद से उठ कर वो कहना याद है
मैं ही मोमिन मैं ही काफ़िर मैं ही काबा मैं ही दैर
जितने अच्छे हैं मैं हूँ उन में बुरा
क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब
नाज़ कर नाज़ तिरे नाज़ पे है नाज़ मुझे
तुम को मालूम जवानी का मज़ा है कि नहीं
तुम गले मिल कर जो कहते हो कि अब हद से न बढ़
शब-ए-माह में जो पलंग पर मिरे साथ सोए तो क्या हुए
ये मुझ से न पूछ तू ने क्या क्या देखा
महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़
अगरचे वो बे-पर्दा आए हुए हैं
प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं