नाज़ कर नाज़ तिरे नाज़ पे है नाज़ मुझे
मेरी तन्हाई है परतव तिरी यकताई का
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कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़
महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़
समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट
गर बस चले तो आप फिरूँ अपने गर्द मैं
वो बुत परी है निकालें न बाल-ओ-पर ता'वीज़
जितने अच्छे हैं मैं हूँ उन में बुरा
ग़फ़लत के तुख़्म बोने वाले उठे
वो बज़्म में हैं रोते हैं उश्शाक़ चौ तरफ़
मोहब्बत ने 'माइल' किया हर किसी को
हमराह अदम से इज़्तिराब आया है
ग़ैर का हाल तो कहता हूँ नुजूमी बन कर