ग़फ़लत के तुख़्म बोने वाले उठे
औक़ात अज़ीज़ खोने वाले उठे
चमका जो तेरा नूर तो आँखें खोलीं
सूरज निकला तो सोने वाले उठे
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
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Gulzar
Javed Akhtar
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मैं अपने कफ़न का सीने वाला निकला
वो बज़्म में हैं रोते हैं उश्शाक़ चौ तरफ़
हमराह अदम से इज़्तिराब आया है
समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट
वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ
हो गए मुज़्तर देखते ही वो हिलती ज़ुल्फ़ें फिरती नज़र हम
है अर्श भी यक फ़र्श क़दम का तेरे
है सू-ए-फ़लक नज़र तमाशा क्या है
साबित है तन में बादशाही दिल की
नींद से उठ कर वो कहना याद है
क़िबला-ए-आब-ओ-गिल तुम्हीं तो हो
कुछ न पूछो ज़ाहिदों के बातिन ओ ज़ाहिर का हाल