अश्क आए ग़म-ए-शह से जो चश्म-ए-तर में
दिल जलने लगा तड़प तड़प कर बर में
'माइल' ये माजरा न देखा न सुना
पानी से लगी आग ख़ुदा के घर में
Faiz Ahmad Faiz
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जलसों में ख़ल्वतों में ख़यालों में ख़्वाब में
क्या आई थीं हूरें तिरे घर रात को मेहमाँ
कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं
समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट
नक़्शा लैल-ओ-नहार का खींचा है
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
है सू-ए-फ़लक नज़र तमाशा क्या है
बंद-ए-क़बा में बाँध लिया ले के दिल मिरा
हमराह अदम से इज़्तिराब आया है
मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस
ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे
खोल कर ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को पढ़ी उस ने नमाज़