अल्लाह मताअ-ए-ज़िंदगानी मिल जाए
फिर अहद-ए-शबाब की निशानी मिल जाए
थी आस बुढ़ापे में तिरी मिलने की
जब तू न मिला तो फिर जवानी मिल जाए
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जितने अच्छे हैं मैं हूँ उन में बुरा
मोहब्बत ने 'माइल' किया हर किसी को
प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं
यारब मिरे दिल में है उजाला तेरा
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
माना वाइ'ज़ बड़ा ही अल्लामा है
ग़ैर का हाल तो कहता हूँ नुजूमी बन कर
नींद से उठ कर वो कहना याद है
दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
अश्क आए ग़म-ए-शह से जो चश्म-ए-तर में
चोरी से दो घड़ी जो नज़ारे हुए तो क्या
इक़रार नगर को गदाई का है