इक़रार नगर को गदाई का है
दा'वा इफ़लास-ओ-बेनवाई का है
हर बात में है फ़रोतनी का इज़हार
ये भी अंदाज़ ख़ुद-सताई का है
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वाइ'ज़ का ए'तिराज़ ये बुत हैं ख़ुदा नहीं
कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं
क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब
है हुक्म-ए-आम इश्क़ अलैहिस-सलाम का
कहते हैं कि रौनक़-ए-जमाली हूँ मैं
मोहब्बत ने 'माइल' किया हर किसी को
मैं सर पे गुनाहों का लिए बार आया
यारब मिरे दिल में है उजाला तेरा
वो पारा हूँ मैं जो आग में हूँ वो बर्क़ हूँ जो सहाब में हूँ
ग़ैर का हाल तो कहता हूँ नुजूमी बन कर
ये मुझ से न पूछ तू ने क्या क्या देखा
नाज़ कर नाज़ तिरे नाज़ पे है नाज़ मुझे