है हुक्म-ए-आम इश्क़ अलैहिस-सलाम का
पूजो बुतों को भेद कुछ इन में ख़ुदा के हैं
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है सू-ए-फ़लक नज़र तमाशा क्या है
रमज़ाँ में तू न जा रू-ब-रू उन के 'माइल'
ये मुझ से न पूछ तू ने क्या क्या देखा
क्या आई थीं हूरें तिरे घर रात को मेहमाँ
अफ़्ज़ूँ जो शबाब दम-ब-दम होता है
अल्लाह मताअ-ए-ज़िंदगानी मिल जाए
हमराह अदम से इज़्तिराब आया है
तुम को मालूम जवानी का मज़ा है कि नहीं
दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
मुसलमाँ काफ़िरों में हूँ मुसलामानों में काफ़िर हूँ
माना वाइ'ज़ बड़ा ही अल्लामा है
कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं