अफ़्ज़ूँ जो शबाब दम-ब-दम होता है
घटती है उम्र क्या सितम होता है
है मिस्ल-ए-चराग़ ज़िंदगानी 'माइल'
बत्ती जलती है तेल कम होता है
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पीरी में शबाब की निशानी न मली
ग़ैर का हाल तो कहता हूँ नुजूमी बन कर
गर बस चले तो आप फिरूँ अपने गर्द मैं
नाज़ कर नाज़ तिरे नाज़ पे है नाज़ मुझे
मेरा सलाम इश्क़ अलैहिस-सलाम को
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
कुछ लुत्फ़-ए-सुख़न वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं
नक़्शा लैल-ओ-नहार का खींचा है
जलसों में ख़ल्वतों में ख़यालों में ख़्वाब में
मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस
वो बज़्म में हैं रोते हैं उश्शाक़ चौ तरफ़
दूर से यूँ दिया मुझे बोसा