दूर से यूँ दिया मुझे बोसा
होंट की होंट को ख़बर न हुई
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वो बुत परी है निकालें न बाल-ओ-पर ता'वीज़
मैं ही मोमिन मैं ही काफ़िर मैं ही काबा मैं ही दैर
ये मुझ से न पूछ तू ने क्या क्या देखा
अश्क आए ग़म-ए-शह से जो चश्म-ए-तर में
तुम को मालूम जवानी का मज़ा है कि नहीं
नक़्शा लैल-ओ-नहार का खींचा है
दुनिया ने मुँह पे डाला है पर्दा सराब का
क्या रोज़-ए-हश्र दूँ तुझे ऐ दाद-गर जवाब
नाज़ कर नाज़ तिरे नाज़ पे है नाज़ मुझे
मैं अपने कफ़न का सीने वाला निकला
क्या आई थीं हूरें तिरे घर रात को मेहमाँ
मैं सर पे गुनाहों का लिए बार आया