नक़्शा लैल-ओ-नहार का खींचा है
मौसम का ख़त जुदा जुदा खींचा है
सूरज नुक़्ता-ए-ज़मीन की गर्दिश-ए-पर्कार
ये दायरा फ़लसफ़ी ने क्या खींचा है
Jaun Eliya
Habib Jalib
Gulzar
Javed Akhtar
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Anwar Masood
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Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Wasi Shah
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मिटी कुछ बनी कुछ वो थी कुछ हुई कुछ
ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे
क़िबला-ए-आब-ओ-गिल तुम्हीं तो हो
जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ
रमज़ाँ में तू न जा रू-ब-रू उन के 'माइल'
क्यूँ शौक़ बढ़ गया रमज़ाँ में सिंगार का
पीरी में शबाब की निशानी न मली
महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
अश्क आए ग़म-ए-शह से जो चश्म-ए-तर में
अफ़्ज़ूँ जो शबाब दम-ब-दम होता है
तुम गले मिल कर जो कहते हो कि अब हद से न बढ़