जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ
दिल ओ दीं बेचने आया है मुसलमाँ कोई
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अल्लाह मताअ-ए-ज़िंदगानी मिल जाए
प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं
पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे
मैं अपने कफ़न का सीने वाला निकला
तौबा खड़ी है दर पे जो फ़रियाद के लिए
मेरा सलाम इश्क़ अलैहिस-सलाम को
ग़फ़लत के तुख़्म बोने वाले उठे
ज़मज़मा नाला-ए-बुलबुल ठहरे
है सू-ए-फ़लक नज़र तमाशा क्या है
अगरचे वो बे-पर्दा आए हुए हैं
क़िबला-ए-आब-ओ-गिल तुम्हीं तो हो