अगरचे वो बे-पर्दा आए हुए हैं
छुपाने की चीज़ें छुपाए हुए हैं
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खोल कर ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को पढ़ी उस ने नमाज़
जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ
तुम गले मिल कर जो कहते हो कि अब हद से न बढ़
तुम को मालूम जवानी का मज़ा है कि नहीं
वो बज़्म में हैं रोते हैं उश्शाक़ चौ तरफ़
जुम्बिश में ज़ुल्फ़-ए-पुर-शिकन एक इस तरफ़ एक उस तरफ़
बंद-ए-क़बा में बाँध लिया ले के दिल मिरा
है सू-ए-फ़लक नज़र तमाशा क्या है
पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे
प्यार अपने पे जो आता है तो क्या करते हैं
वा'दा किया है ग़ैर से और वो भी वस्ल का
मोहब्बत ने 'माइल' किया हर किसी को