मोहब्बत ने 'माइल' किया हर किसी को
किसी पर किसी को किसी पर किसी को
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है हुक्म-ए-आम इश्क़ अलैहिस-सलाम का
खोल कर ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को पढ़ी उस ने नमाज़
समझ के हूर बड़े नाज़ से लगाई चोट
महशर में चलते चलते करूँगा अदा नमाज़
पैदल न मुझे रोज़-ए-शुमार उन से दे
कुछ न पूछो ज़ाहिदों के बातिन ओ ज़ाहिर का हाल
जा के मैं कू-ए-बुताँ में ये सदा देता हूँ
मैं ही मतलूब ख़ुद हूँ तू है अबस
मेरा सलाम इश्क़ अलैहिस-सलाम को
निकली जो रूह हो गए अजज़ा-ए-तन ख़राब
ग़ैर का हाल तो कहता हूँ नुजूमी बन कर
मुसलमाँ काफ़िरों में हूँ मुसलामानों में काफ़िर हूँ